मन बेचैन होता है…. .
मन बेचैन होता है…
बात जब ह्रदय से जुड़े रिश्तों की हो तो जाहिर सी बात है जरा सी आह भर से मन बेचैन हो उठता है! और जहाँ पर एक पिता के प्रति स्वयं का स्नेह और दायित्व हो तो बेचैन होना स्वाभाविक है! जब दूरी हो अपनों से तो कमी हर पल लगती है हर पल यादों से भरा होता है पर कुछ मजबूरियाँ होती है जो खुद को अपनों से दूर करती हैं वरना कौन दूर होना चाहता है! बात जब फौजी भाईयों की होती है तो रुह काँप जाती हैं पूरा घर उनके आने का इन्तजार किया करता है माँ और पिता बेटे के इन्तजार में एक बहन भाई के और पत्नी अपने पति के इन्तजार में हर पल पलके बिछाये बैठे रहते हैं!
और जब अचानक खबर मिलती है उनके शहीद होने की तो सारे सपने बिखर जाते हैं पल भर में!एक पिता कहता है कल ही तो बेटे से बात हुई थी एक माँ…. एक पत्नी…..???बुढ़ापे के लिए बैसाखी का भी सहारा शेष नहीं रह जाता! शेष रह जाती हैं तो सिवाय यादें और आँसू!
ये दूरी भी कितना तड़पाती है जीवन भर!
दो सखियाँ है मेरी जो फौजी की पत्नी कहलाती है! देखना होता कि कैसे साल-साल भर इन्तजार करती है! उनके जज्बे को दिल हर बार सलाम करता है! ऐसे में उस फौजी जवान के पास भी बहुत सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं पहली अहम् जिम्मेदारी तो देश की रक्षा करना और दूसरी अपने परिवार की! कैसे एक वृद्ध पिता अपने बेटे की राह देखता रहता है कि कब उसका लाड़ला आयेगा! लाड़ले को भी हर पल चिन्ता बनी रहती है कि बाबू जी की तबियत सही तो होगी ना? कुछ मालूम नहीं? क्योंकि बाबू जी हर दु:ख को छिपा लेते हैं ताकि बेटा परेशान ना हो!
सच रिश्ते ऐसे ही होते हैं एक दूसरे के लिए अपनापन और लगाव! बात उनकी तो सबसे अलग है!
आजकल अपने शहर से मैं भी दूर हूँ ! कल जब पता चला पापा की तबियत सही नहीं है मन एकदम घबरा गया पूरी रात नींद नहीं आयी जाने कितने बुरे-बुरे ख्याल आते रहे!
घर पर अक्सर सब बातें छिपा लेते हैं ताकि मैं परेशान ना होऊँ! मेरी खुशी के लिए झूठी मुस्कान चेहरे पर दर्द में भी! इसी छिपाने की वजह से मैंने अपने जीवन में एक को हमेशा के लिए खो दिया! मम्मी ने तनिक भी जाहिर ही ना किया!
आज भी मन बार-बार यही कहता है काश! एक बार मुझसे बात तो कर लेती तुम! ये तुम्हारा छिपाना कितना गलत हो गया!
इसलिए दूर रहकर जब अपनों के अस्वस्थ रहने की खबर मिलती हैं तो मन में एक अजीब सी बेचैनी होती है! लगता है उसी पल वहाँ पहुँच जाएँ!पर कुछ मजबूरियाँ होती हैं जो अपनों से दूर रहने का गुनाह बार-बार करवाती हैं! लेकिन मन यही कहता है बस कुछ बन्धन कम हो जाएँ और हम अपनों के करीब हो! हर सुख-दु:ख में साथ!
शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)