मन बिरह में जल रहा
अविराम गति से मन मेरा, तेरे विरह में जल रहा
लगता अनादि काल से, रिश्ता है अपना चल रहा
है चंद्र की शालीनता, आवेग भी तूफान सा
है प्रेम का ही ताप ये, जिसमें ये तन मन जल रहा
दिल में मेरे तुम बसी हो, सुबह भी और शाम भी
होती नही एक पल अलग, ये दिल बात तुम से कर रहा
आंखों में प़िय तुम बसी हो, अधरों पर तुम्हारा नाम है
मेरे सपनों का प्रिय ऐसा, फसाना चल रहा
हैं तेरी यादें मधुर, दिल में मिलन की आस है
प्रेम है तेरा असीमित, प्रेम ही अब पल रहा
नींद भी मेरी उड़ी, और चैन भी मेरा गया
मधुर मिलन की आस में, मेरा यह जीवन चल रहा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी