मन पीर बह उठेगा, फिर हर्ष तुम करोगे।।
मन पीर बह उठेगा, फिर हर्ष तुम करोगे।।
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जब हार से उबरकर, संघर्ष तुम करोगे।
मन पीर बह उठेगा, फिर हर्ष तुम करोगे।।
मन पीर पाल चलना, तौहीन जिन्दगी की।
सत्कर्म मात्र सूचक, भयहीन जिन्दगी की।
मन धैर्य धारकर जो, विमर्श तुम करोगे।
मन पीर बह उठेगा, फिर हर्ष तुम करोगे।।
जीवन डगर कठिन है, संघर्ष एक साथी।
नव पंथ साध चलना, शुभ कर्म नेक साथी।
चल नेक पंथ फिर तो, आदर्श तुम करोगे।
मन पीर बह उठेगा, फिर हर्ष तुम करोगे।।
उर त्याग वेदनाएंँ, तू हर्ष का वरण कर।
रण ठान झंझटों से, उत्कर्ष का वरण कर।
संत्रास से निकल कर, दुर्धर्ष तुम करोगे।
मन पीर बह उठेगा, फिर हर्ष तुम करोगे।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार