मन पीर कैसे सहूँ
मन पीर कैसे सहूँ ,तुम बिन कैसे रहूँ
अब और क्या कहूँ ,खुद कुछ जान लो ।
तुम्हीं लगते जीवन ,तुम्हीं मेरे प्राणधन
माना तुमको सजन ,अब पहचान लो ।
प्रतीक्षारत है आँख ,उगते हैं नित पाँख
करो न यूँ स्वप्न राख ,अपना तो मान लो ।
चतुर तुम्हारा ज्ञान ,मुझको यही है भान
दोगी प्यार प्रतिदान ,हृदय में ठान लो ।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
2/6/2022