‘मन नहीं मानता’
तुम सच में भाव शून्य हो गए हो
या….
मात्र नाटकीयता है जो….
ओढ़ ली है तुमने जटाजूट श्रीफल जैसी
बाह्य रूप में घोर कठोरता
पर भीतर से तरल मिठास से भरपूर..
जिसे संचित कर रखना चाहते हो..
सिर्फ़ हमारी धरोहर समझ..
कहीं उद्वेग में छलक न जाए
इसीलिए कठोर कवच के भीतर
हमारे स्नेह की स्निग्धता बनाए रखना चाहते हो शायद…
क्यों…?
मन नहीं मानता
तुम्हारा भाव शून्य होना..
Gn
01-02-22
मंगलवार