मन तो करता है मनमानी
मन तो करता है मनमानी
टिकता नहीं है एक जगह पर
आदत वही पुरानी
मन तो करता है मनमानी
भंवरे जैसा घूम रहा है
कली कली को चूम रहा है
रस ले ले कर अतृप्त है
मृगतृष्णा में भूल रहा है
कितना मैं इसको समझाऊं
दुनिया आनी जानी
मन तो करता है मनमानी
सुनता नहीं कृष्ण की गीता
नहीं राम रस जरा भी पीता
गांव शहर और डगर डगर
फिरता है यह रीता रीता
कैसे हो मैं ध्यान लगाऊं
कौन सी इसको कथा सुनाऊं
युक्ति न मैंने जानी
मन तो करता है मनमानी
किससे बांधूं इसकी डोर
मिलता नहीं है इसका छोर
घूम रहा मदमस्त जहां में
कब आएगी इसकी भोर
समंदर होकर भी है प्यासा
कौन पिलाए पानी
मन तो करता है मनमानी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी