मन चंचल है
मन चंचल है
मन चंचल है मन मोहित है
मन पवन सा बहता झोंका है
मन मंदिर है मन पूजा है
मन मगन प्रेम का सागर है
प्यारी प्यारी बातों से
प्रेम प्रारंभ हो जाता है
मंद मंद मुस्कानों से
दिल का डोर बन्ध जाता है
रात में प्यारे सपनों से
एक उमंग प्रेम का आता है
मन की बात दिल से होने पर
उत्सव जीवन में आता है
नटखट चंचल सी आदत उसकी
रातों की नींद चुरा ले जाती है
पायल की प्यारी सी छम छम
दिल में खनक कर जाती है
चोरी चोरी चुप कर मिलना
एक डर सा मन में रहता है
प्यार भी बड़ा अजीब है यारों
डर डर कर भी डर नहीं रहता है
मन चंचल है मन मोहित है
मन पवन सा बहका झोंका है
मन मंदिर है मन पूजा है
मन मगन प्रेम का सागर है
युवा कवि / लेखक
( गोविन्द मौर्या – प्रेम जी )
सिद्धार्थ नगर , उत्तर प्रदेश