मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -३)
मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -३)
३-अविनाशी आत्मा चल जगताते प्रतिकूल,
उसी को विवेक कहैं सभी साधनों का मूल,
होता जब वैराग,भोग ब्रह्मलोक के भी धूल,
सम के स्वरूप षष्ट कहैं ये तमाम सुणों,
सम दम श्रद्धा समाधान उपराम सुणों,
छठी है तितिक्षा भिन्न-२ नाम सुणों,
सरे आम सुणों चित लाय के जो चाहता दुख से निक्षा।
व्याख्या–कवि आगे कहते हैं कि उस प्रभु की शाश्वतता का,आत्मा के चलायमान होने का और सभी प्रकार की सांसारिक विपरित परिस्थितियों के ज्ञान को हि विवेक कहा जाता है अर्थात् सभी प्रकार के अच्छे और बुरे के ज्ञान को हि विवेक कहा जाता है जो सभी साधनों की जड़ है।
जब मनुष्य वैराग्य की अवस्था में होता है तो उसको तमाम प्रकार की भोग विलासिता और सर्वश्रेष्ठ आसन भी मिट्टी के समान लगते हैं।
अब मैं आपको ज्ञान प्राप्ति की छह संपदाओं के बारे में बताता हूँ,जो इस प्रकार हैं-
सम-सभी प्रकार से शान्ति, दम-इंद्रियों पर संयम,श्रद्धा-सत्य से प्रगाढ़ प्रेम,समाधान-समाधी या सत्य के दर्शन,उपराम-विषय वासंनाओं से आसक्त न होना हैं और छठी है तितिक्षा-सभी प्रकार के अंतः और बाह्य द्वंद सहन करना।
हे प्राणी अगर तूं सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति चाहता है तो इन सभी के बारे में ध्यान लगा कर सुन।