मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -१)
मन खुद डटज्यागा रचना व्याख्या सहित (कली -१)
टेक–मन खुद डटज्यागा,सीख गुरु से शिक्षा।
व्याख्या–कवि कहता है,हे मानव तेरा मन पर काबू अपने आप हो जाएगा तूं पहले गुरु के पास जाकर ज्ञान ग्रहण कर।
१-गुरु की दया से होता भ्रम जाल दूर देख,
गुरु हो दयाल सर्व गुणों से भरपूर देख,
अविध्या के अन्दर मन हो रह्या है चूर देख,
विषियो मं फंस कर लूट रह्या कूर देखाे,
जगह-२ भटकता होया मजबूर देखो,
जर्रे जर्रे अन्दर रमया वहीं नूर देखो,
सुणो हुजूर जरूर रुकैगा,तज दर दर की भिक्षा।
व्यख्या–कवि मनुष्य को सम्बोधित करते हुए कहता है कि अगर गुरु की कृपा दृष्टि तेरे ऊपर पड़ी तो तेरा यह संशय रुपी जाल भी दूर हट जाएगा।गुरु बहुत दयालु और सभी प्रकार के गुणों से सम्पन्न हैं।हे मानव तुम्हारा मन अज्ञानता के नशे में डूबा हुआ है।
विषय वासनाओं में फंस कर तूं बुराई ही प्राप्त कर रहा है।
इन्हीं वासनाओं के वशीभूत तूं इधर उधर भटकने पर मजबूर है।हे मनुष्य ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है,उसकी आभा को अपने अन्दर तलाश कर।
हे श्रेष्ठ मानव सुनो,तुम्हारा मन पर काबु भी हो जाएगा,बस तुम इधर उधर भटकना छोड़ दो और गुरु की शरण में चले जाओ।