मन खग
बादलों के संग संग
कहां जाते हो
मन खग
सुदूर क्षितिज
की
नापने को दूरियां
विलीन हो जाएंगे
वन,जल,नीर
मेघ
तुम्हारा आधार
क्या होगा फिर
आवश्यक नहीं
जो दिखता हो
या
अस्तित्व जिसका
होता सा लगता हो
हो वास्तव में भी
मन हो जाओ अनासक्त
हो जाओ आशावान
लेकिन विरक्त
ठीक
अनासक्ति योगी की तरह
पानी में रहो
परंतु
रहो निर्लिप्त
पानी संग
सूखा रहना
जब तुम सीख जाओगे
शिखर संग होकर भी
फिर
तुम
पिघल कर बहना सीख जाओगे
पिघल कर बहना सीख जाओगे।