मन के मंदिर में
मन के मंदिर में बसकर,
पावन इस देह को करना!
नित नाम जपूं और ध्यान धरूं,
अपना नेह मुझमें भरना।
टूट बिखर न जाऊं कभी,
अपना प्रताप मुझमें भरना।
मन के मंदिर में बसकर,
पावन इस देह को करना!
जब जीवन हो बिल्कुल नीरस,
तुम रंगों की वर्षा करना।
गर सत्कर्मों से रुखसत हो कभी,
कृष्णा बन गीता पढ़ना।
जब प्रवाह बहे अपवादों का,
तुम धैर्य की धारा बन बहना।
मन के मंदिर में बसकर,
पावन इस देह को करना!
गर कर्म करूं और निष्फल बनूं,
साहस रूपी शिखर बनना,
जब मदमत्तता की व्याप्त आंधियां हों,
आध्यात्मिक बुद्धि का प्रसार करना।
तामसिक प्रवृत्ति की उपज बढ़े,
सात्विकता तुम मुझमें भरना।।
मन के मंदिर में बसकर,
पावन इस देह को करना!!