“मन के चट्टानों से”
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
रह – रह कर,
तह दर तह पर जाना।
धार समय की यूं देखो,
कैसे उमड़ उमड़ कर जाना।
मन के चट्टानों से ,
भावों का यूं टकराना।
कुछ टूटे – टूटे बिखरे – बिखरे,
ख्वाबों का सिहर – सिहर जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
विस्मृत बातों का आलिंगन कर,
नीर नयन से बरसा जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
सरल श्याम सी उर्मि का,
यूं उदधि से मिलने जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
बिखरे बिखरे श्वांसो का,
निःशब्द संवाद करते जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
रह – रह कर,
तह दर तह पर जाना।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…