मन के आलस को तोड़ो
उठो शंकर मन के आलस को तोड़ो !!
निशापति को भु लाकर छोड़ो !!
तुम करो शांति के लिए क्रान्ति का घोष !
हिमकण में भी भरो अनल का जोश !!
लाल खड़ग से शान्ति सुरक्षित रहती हैं !
तुम बनो शिवाजी, यही भारती कहती हैं !!
जहां भीम, अर्जुन हो वहीं धर्म की जय हैं !
क्षमा याचना जहां, वहाँ शान्ति का क्षय हैं !!
हर युद्ध शान्ति के लिए लड़ा जाएगा !
अनल रंग का भगवा ही लहराएगा !!
जहाँ स्वतंत्रता हो, वहीं शान्ति का संगम है !
उन भगत और शेखर को बार बार नमन हैं !!
तुझे आँख बन्दकर लक्ष्य भेदना होगा !
तुझे आज धरा को रक्त चढ़ाना होगा !!
जहाँ वीर के हाथों में गांडीव मिलेगा !
शांति कुसुम वसुधा पर वहाँ खिलेगा !!
कुरुक्षेत्र में केवल कंकाल पड़े हैं !
धर्म युद्ध आखिरी ऐसा होता हैं !!
कलम बता कैसे विजय मिली थीं !
और बता दे शंकर कैसा होता हैं !!
मौलिक एवं स्वरचित
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा