आह्वान
मन कुछ उदास है , हर चेहरे पर भी अवसाद है ,
विभीषिका के फिर लौट आने के समाचार का प्रचार है,
अमानवीयता और स्वार्थ की पराकाष्ठा
हम देख चुके ,
असंभावित मानसिक कष्ट और दुःखों को
हम झेल चुके ,
कब तक हम अपने भविष्य को
असुरक्षित करते रहेंगें ?
किसी दूसरे के कृकत्य का फल नियति मान
भोगते रहेंगे ?
हमें समस्त विवादों और व्यक्तिगत हितों से परे
सोचना होगा ,
त्रासदी के प्रारंभ से पहले एकजुटता से उसे
समूल नष्ट कर देना होगा ,
वरना फिर निरीहों की सामुहिक हत्या होगी ,
पुनः मानवता सिसकती मूकदर्शक बन रह जायेगी।