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4 May 2024 · 2 min read

“मन की संवेदनाएं: जीवन यात्रा का परिदृश्य”

“मन की संवेदनाएं: जीवन यात्रा का परिदृश्य”

हाथ में लिए हुए, कलम की बातें थी,
मन यूं बेचैन था, शब्दों की रातें थी!!
संवेदनाएं उभरी कविता में साज बनके,
प्रेम, दर्द के रंगों में प्रेयसी सी साथ थी!!

आँखों ने यूं बातें की हैं छिपी रहस्यों की,
ह्रदय ने विचारों को नवस्वर बोल दिया,
संवेदनाओं में छिपी थी आखिरी उम्मीदें,
यात्रा बनी कविताएं अनवरत मौन थी!!

पूछती मुझसे अंदर छिपी ख़्वाहिशें नई,
बहारों में पंछियों सी उड़ने की चाह थी,
दो पंखों में बांधी थी मन की संवेदना को,
हौसलों से आकाश को छूने की आस थी!!

मन की संवेदना जब बाहर आती थी,
ये धरती नई कविताएं गुनगुनाती थी!!
बरसती थी छीटें मन की भावनाओं से,
रोम-रोम शब्दों की छुअन महकाती थी!!

सुहाने पलों में राग उमंग का रंग भरते,
मन की संवेदनाएं जब ऊपर उठाती थी,
हृदय में आलोकित प्रेम के उजालों में साए,
जीवन के हर सफ़र को रूमानी बनाती थी!!

दिया जिसने जीवन को अक्षरों का नवरूप,
कविताओं में पिरोई हुई शब्दों की रानी थी!!
भावनाओं ने किया है उन बाँहों का आलिंगन,
जिस कलम ने गढ़ी हर लफ़्जों की कहानी थी!!

यूं मंज़िलें मिलती नहीं थी हार के बहानों से,
सहानुभूति जीत के दरवाज़े खटखटाती थी!!
बस मुश्किलें सामने आती रहती थी हर पल,
कुछ करने का हौसला नसीब चमकाती थी!!

भावों की लहरें हैं, विचारों का आभा मंडल है,
संवेदना तो समुंदर में, मेरे वहमों का संगम है!!
धुंधली-सी सांवली वो धड़कनों की आवाज़ थी,
मन की गहराई में उमड़ते सपनों की साज थी!!

कौन छू सकता था, संवेदना की गहराईयों को,
पलभर यूं जिए बिना, बयां करना संभव नहीं,
तेजमय प्रकाश, शक्ति, संगीत, और सौंदर्य सी,
संवेदना जीवन में अनंत लहरों को उठाती थी!!

प्रेम जड़ों से लिपटी हुई, हर पंक्ति उजाला बनी,
भावनाएं छांव में ढली, हर कविता आईना बनी!!
ऊँची उठती मन की आवाज़ें, शब्दों की गंगा बहाती,
दहलीज़ पार करती, भाव रस अपने में समाती थी!!

कह दे वो अनहद कथा, शब्दों से न कोई बांध सका,
तोड़ दे वो चुप्पी जो, हर शब्द में कोई छिपा न सका!!
एक सोच, एक आवाज़ बनके इंसान को झूमाती थी,
संवेदना बड़ी अनूठी, दुःख-सुख में हमेशा जुझाती थी!!

कविता के मोती सौंधते जीवन की गहराई में रहती थी,
व्यक्तित्व को आदर्श बनाती, कविताएं रंग सजाती थी!!
प्रेम का अनुभव कराती, ख़ामोशी में बातें छिपाती थी,
भाव में बहती लहरें, मन की संवेदना पहचानती थी!!

स्वरचित रचना ✍️✍️
मैं डॉ. शशांक शर्मा “रईस” बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से हूं। मैं ये घोषणा करता हूं कि ये रचना मेरी स्वरचित रचना है। किसी भी तरह से कॉपी राइट नहीं किया गया है।

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