“मन की वीना सुनोगे कभी तुम”
मन की वीना सुनोगे कभी तुम ,
तार -तार झंकृत हुआ ये मन |
सरगम सी उठती हैं साँसें मेरी
जैसे लहरों का हो संगीत कोई |
मन की वीना सुनोगे कभी तुम ,
तार – तार झंकृत हुआ ये मन |
मृदंग सी बजती हैं धड़कन मेरी ,
जैसे झरनों का हो मलयगीत कोई |
मन की वीना सुनोगे कभी तुम ,
तार -तार झंकृत हुआ ये मन |
नाचती है आज तो मन की मयूरी,
जैसे वर्षा का हो सावन गीत कोई |
मन की वीना सुनोगे कभी तुम ,
तार-तार झंकृत हुआ ये मन……||
…निधि…