मन की बात
‘मन की बात ‘
आजकल के माहौल को देखते हुए मेरे मन में यह विचार आया तो अभिव्यक्ति की इच्छा बलवती हो गई। आजकल इतनी अच्छी पुस्तकें छप रही हैं, पर पाठकों की संख्या कम होती जा रही है। साहित्य के प्रति लोगों का झुकाव कम होता जा रहा है। कोई साहित्यिक गोष्ठी हो या सम्मेलन, बस गिने चुने लोग ही पहुंचते हैं, ये बात भविष्य के लिए खतरा है। जो लोग लिखते हैं वो भी दूसरों की रचना नहीं पढ़ते। इस पीढ़ी के लोगों को कुछ ऐसा प्रयास ज़रूर करना चाहिए जिससे भावी पीढ़ी का पुस्तकों के प्रति रूझान बढ़े। जब हम विभिन्न विषयों का अध्ययन करते हैं, तब ही हमारी सोच को विस्तृत दिशा मिलती है। पुस्तक पढ़ना, उस पर चिंतन-मनन करना तथा कुछ नये विचारों को आत्मसात करना हर पीढ़ी के लिए बहुत आवश्यक है। समाज जिस तकनीकी युग की तरफ बढ़ रहा है, उसको देखते हुए यह कहना नितांत आवश्यक लग रहा है कि साहित्यिक एवं बौद्धिक विमर्श के लिए हम सबको समय निकालना चाहिए। केवल बातें करना काफी नहीं है, हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी भावी पीढ़ी तर्क-वितर्क के साथ बौद्धिक विमर्श में भी आगे रहे।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश