मन की बात-२ :”चंदन”
कम पढ़े लिखे लोग भी व्यवहार में सफल हो जाते हैं। अधिक पढ़े लिखे लोग भी व्यवहार में फेल हो जाते हैं। सभ्यता बड़ों से सीखनी पड़ती है।
कुत्ते गधे पशु पक्षी आदि तो जन्म से ही सीख कर आते हैं। उन्हें कैसे जीना है, क्या करना है, क्या नहीं करना, क्या खाना, क्या नहीं खाना, कैसे अपनी रक्षा करनी इत्यादि, यह सब, ईश्वर उन्हें जन्म से ही सिखा कर संसार में भेजता है। इसलिए उनका कोई स्कूल कॉलेज गुरुकुल शिक्षा संस्थान अध्यापक परीक्षाएं आदि कुछ भी नहीं होता।
परंतु मनुष्य ऐसा नहीं है। वह जन्म से सीखकर नहीं आता। उसे सब कुछ यहां सिखाना पड़ता है। बैठना उठना खाना पीना चलना फिरना दौड़ना व्यायाम करना, पढ़ना लिखना, बोलना, अन्य अनेक प्रकार की विद्याएं, गणित विज्ञान भूगोल आदि, अनेक भाषाएं हिंदी अंग्रेजी मराठी गुजराती इत्यादि, मनुष्य को सब कुछ सिखाना पड़ता है। बिना सिखाए वह सीखता नहीं। इन सब विद्याओं के अतिरिक्त, सबसे बड़ी विद्या – उत्तम व्यवहार की विद्या है, वह भी सीखनी पड़ती है।
यदि कोई व्यक्ति स्कूल कॉलेज में अंग्रेजी गणित विज्ञान समाजिक ज्ञान चिकित्सा विज्ञान भूगोल खगोल शास्त्र आदि कितना भी पढ़ ले, परंतु यदि उत्तम व्यवहार करना उसने नहीं सीखा, तो समझ लीजिए, वह अपने जीवन में आज भी असफल है, और आगे भी असफल होगा। ये भूगोल विज्ञान आदि सारी विद्याएं स्कूल कॉलेज में इसीलिए पढ़ाई जाती हैं, ताकि मनुष्य की बुद्धि का विकास हो और वह उत्तम व्यवहार करके दूसरों को सुख दे सके।
जो व्यक्ति दूसरों को सुख देता है, उसे दूसरे लोग भी सुख देते हैं, और ईश्वर भी सुख देता है। जो लोग दूसरों को दुख देते हैं, दूसरे लोग भी उन्हें दुख देते हैं, तथा ईश्वर भी ऐसे लोगों को दुख देता है।
तो जीवन की सफलता इसी बात में है कि हम दूसरों को सुख देवें, यह बात सबसे अधिक आवश्यक है। ऐसे व्यक्ति का ही जीवन सफल माना जाता है, जो दूसरों को सुख देता है। दूसरों को सुख कैसे दिया जाए, इसी का नाम है, उत्तम व्यवहार की विद्या।
आज स्कूलों कॉलेजों में गणित विज्ञान भूगोल खगोल शास्त्र आदि विषय तो खूब पढ़ाए जाते हैं। परंतु उत्तम व्यवहार, न तो माता-पिता घर में बच्चों को सिखाते, और न ही अध्यापकगण स्कूल कॉलेज में । इसलिए आजकल के बच्चों को उत्तम व्यवहार की विद्या का ज्ञान बहुत कम है, जिसके कारण, वे स्वयं दुखी हैं और दूसरों को भी दुख दे रहे हैं।
पुराने समय में कुछ लोग, जो स्कूल कॉलेज पढ़ने जा नहीं पाए, उनके पास सुविधाएं नहीं थी, पढ़ने के लिए पुस्तक आदि साधन नहीं थे, पैसा भी नहीं था; परंतु ऐसे लोगों ने अपने माता-पिता और बड़े बुजुर्गों से उत्तम व्यवहार करना सीख लिया। वे लोग स्कूल कॉलेज की डिग्रियां न होते हुए भी, उत्तम व्यवहार सीख लेने के कारण, अपने जीवन में सफल हो गए। उन्होंने दूसरों को सुख अधिक दिया। जबकि स्कूल कॉलेज के पढ़े लिखे लोग दूसरों को सुख कम देते हैं, और दुख अधिक देते हैं। यह बात तो सभी जानते हैं। ऐसी शिक्षा या विद्या किस काम की ? जो मनुष्य को मनुष्य नहीं बनाती, जो दूसरों को सुख देना नहीं सिखाती ?
तो आपका अभिप्राय क्या है? क्या स्कूल कॉलेज में विद्या नहीं पढ़नी चाहिए ? क्या विद्या पढ़ना गलत काम है ? नहीं, नहीं। विद्या पढ़ना गलत काम नहीं है, अच्छा काम है। परंतु हमारा अभिप्राय यह है कि विद्या पढ़ने के साथ साथ सभ्यता नम्रता धार्मिकता उत्तम व्यवहार आदि को भी साथ में जोड़कर चलना चाहिए।
क्योंकि पढ़ाई लिखाई करने से बुद्धि का विकास होता है। बुद्धि में तीव्रता आती है। जैसे चाकू को पत्थर पर घिसने से उसकी धार तेज हो जाती है। उसी प्रकार से पढ़ाई लिखाई करने से बुद्धि भी तेज़ हो जाती है, बुद्धि की क्षमता बढ़ जाती है। यदि इस बढ़ी हुई बुद्धि के साथ धार्मिकता और उत्तम व्यवहार को भी जोड़ दिया जाए, तो उस पढ़े लिखे व्यक्ति की बुद्धि कल्याणकारी एवं सुखदाई हो जाती है। ऐसे व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है।
आज के लोगों ने पढ़ाई लिखाई करके बुद्धि की तीव्रता तो कर ली, परंतु धार्मिकता एवं उत्तम व्यवहार न सीखने के कारण, उसका दुरुपयोग शुरू कर दिया। झूठ छल कपट लूटमार ब्लैक मार्केटिंग ब्लैकमेलिंग डकैती अपहरण आतंकवाद आदि का व्यवहार किया। क्या लाभ हुआ ऐसी पढ़ाई से ?
धार्मिकता और उत्तम व्यवहार के बिना, केवल पढ़ाई करके बुद्धि का विकास करके, दूसरों को दुख देना तो अत्यधिक हानिकारक है। इसकी अपेक्षा तो न ही पढ़ते, तो अधिक अच्छा होता। कम से कम दूसरों को दुख तो न देते!
इसलिए मेरा सब लोगों से निवेदन है, कि आप अपने बच्चों को धार्मिक पहले बनाएं, और विद्वान बाद में। पढ़ाई के साथ साथ उनको उत्तम व्यवहार की विद्या अवश्य सिखाएं, जिससे उनका और आपका जीवन सफल हो सके, सुखमय बन सके। किताब थोड़ी कम पढ़ लेंगे, तो इससे कोई बहुत बड़ी हानि नहीं होगी।
यदि किताब खूब पढ़ ली और उत्तम व्यवहार नहीं किया, तो बहुत बड़ी हानि होगी। इतिहास के उदाहरण भी आप जानते ही हैं। रावण बहुत किताब पढ़ा हुआ था, फिर भी व्यवहार ठीक न होने से, आज तक लोग उसे अपमानित करते हैं। श्रीराम चन्द्र जी संभवत: रावण से कम पढ़े हुए थे, फिर भी लाखों वर्ष बाद भी आज तक उनका सम्मान हो रहा है। यह उनके उत्तम व्यवहार का ही चमत्कार है।
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? प्रभु चरणों का दास :-चंदन
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