मन की बातें मन ही जाने
मन की बातें मन ही जाने , तिल तिल कर जो चूर हुआ है।
होनी अनहोनी साथ लिए, वो जीने को मजबूर हुआ है।
जो जिंदगी को देखा करता था अपने घर के आंगन में,
वही शख्स रोजी रोटी के कारण, अपने घर से दूर हुआ है।
थक हार के आने वाले ,फिर आकर अन्न पकाने वाले।
आधी नींद ,अधूरे सपने, लेकर सो जाने वाले।
व्यथा न पूछे मन की उनके ,मन में कभी न गुरुर हुआ है।
मन की बातें मन ही जाने , तिल तिल कर जो चूर हुआ है।
भगदौड़ है जीवन भर ,जीवन भर कभी आराम कहाँ है।
दिन से चलकर रात में आते ,जीवन मे उनके शाम कहाँ है।
परिवार की चिंता में डूबा रहता है ,कुछ न कुछ जरूर हुआ है।
मन की बातें मन ही जाने , तिल तिल कर जो चूर हुआ है।
अधूरी जिंदगी के लम्हो में ,होते है कुछ ख्वाब अधूरे।
जरूरत का संदेशा घर से आये ,तो हो जाते हैं जवाब अधूरे।
हर मांग पे हाँ कहता है ,सबकुछ उनको मंजूर हुआ है।
मन की बातें मन ही जाने , तिल तिल कर जो चूर हुआ है।
– सिद्धार्थ पाण्डेय