मन की प्रीत
मन की मीत ही मेरी प्रीत है
आकाश में उड़ते परिन्दाे का ,कुछ तो अरमान होता है
धरती पर रेंगते जीव का भी, कुछ न कुछ तो अरमान होता है
छल-कपट भरी इस दुनिया से, ना जाने कैसी
रीत है
आकाशी जीव के मन की ,मीत ही तो मेरी प्रीत
है
पर आज की समझदार दुनिया के ,जनाब का मन तो
दो धारी तलवार है
मालुम नही काटा है ना जाने कितने के अरमानो पर यह दो धारी तलवार है
पक्षियो की छल -कपट भरी दुनिया से ,ना
जाने कैसी रीत है
उस आकाशी जीव की ,मीत ही तो मेरे मन की
प्रीत है
जिससे देखने वाले के मन में एक अजीब सा किरदार है
क्योकि उनके पास अब ना वो दो धारी तलवार है
पक्षियो की छल -कपट भरी दुनिया से ,ना
जाने कैसी रीत है
उस आकाशी जीव की ,मीत ही तो मेरे मन की
प्रीत है