मन की दुनिया
मन की अपनी अलग ही दुनिया
यादों का इसमें है कब्जा
कुछ अपनों की कुछ गैरों की
कुछ बचपन की कुछ यौवन की
कुछ मीठी सी कुछ खट्टी सी
लेकिन सारी अपनी सी
मन की अपनी अलग ही दुनिया
मन ही रोता मन ही हँसता
भेद ये मन का कठिन बहुत है
मनमीत ही मन को जान है पाता
मन से मन को जीत जो लेता
अधरों पर मुस्कान सजाता
मन की अपनी अलग है दुनिया
मन ही जीता मन ही मरता
दृढ़ संकल्प भी मन ही करता
मन से सुख और दुख परिभाषित
मन को मन भर प्यार चाहिए
प्यार मिले तो प्यार बाँटता
मन की अपनी अलग है दुनिया
डॉ सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश