मन की डोर
मन की डोर
~~~~~~
(प्रार्थना)
नयनों को भटकने दे प्रभु,
मन की डोर न छोड़ना तुम।
जग माया की विकट जाल में,
प्रीत की लाज बचाना तुम ।।
जब भी देखूँ नयन दृष्टि से,
हंसते गाते मोहक दृश्य ।
भ्रमजाल से बच के रहें बस,
पकड़ों मन की डोर प्रभु।।
यदि हो पीड़ा तन को हे प्रभु,
मन की आश में रहना तुम ।
तुझको ही अर्पण कर दूँ मैं,
साँसों की हर धड़कन को।।
जप-तप-ब्रत का ज्ञान नहीं मुझको,
कैसे मैं तुझको याद करे प्रभु।
उम्र की रैना बीत रही है,
मन की डोर न छोड़ना तुम।।
कोलाहल की करतल ध्वनि में,
तुझको मन से श्रवण करूँ।
मन तेरा ही सुमिरन करे बस,
मन में ऐसे भाव भर दो।।
निशि दिन सजल नेत्र हो मेरे,
ऐसी भक्ति का वरदान करो।
हो जाए अहंभाव विलोपन,
पकड़ों मन की डोर प्रभु।।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ११ /०७/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201