मन की डायरी
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मन की डायरी में लिखे अपने अरमां।
कभी समझ न पाया जिन्हें ये जहां।
चाह थी मेरी बादलों सी मैं उड़ती फिरूं
मगर मेरे हिस्से का ,खो गया आसमां
पंख काट दिये हैं मेरे इक सैय्याद ने
आज पिंजरे में बैठी हूं,बनकर बेजुबां।
पहरे में हूं,मगर सोच पर नहीं हैं पहरे
लिखूं मैं जज्बात, लेकिन कैसे कहां।
हर औरत को मिली है ऐसी कई कैद
हर छत पर है ,मगर नहीं कोई आस्तां
सुरिंदर कौर