मन की चाहत
मैंने तुझे जो चाहा, मैंने तुझे जो पूजा
ढूँढ़ों जो ढूँढ़ती हो, आशिक मिले जो दूजा
ख़ामोश है जुबाँ जो
पर दिल ये डोलता है
आँखों का मेरे मंज़र
रह–रह के बोलता है
एहसास की ज़मीं से, है आसमान गूँजा
ढूँढ़ों जो ढूँढ़ती हो, आशिक मिले जो दूजा
चेहरे पे कुछ लकीरें
माथे पे बूँद पानी
मौसम बयान करते
दिल की कोई कहानी
गुलशन के होंठ पर है, कलियों का नाम सूझा
ढूँढ़ों जो ढूँढ़ती हो, आशिक मिले जो दूजा
है राह कोई पूनम
जो चाँदनी बिछी है
चौबारे मेरे आकर
जो नाचती खड़ी है
कोई है राह नीची, कोई कदम है ऊँचा
ढूँढ़ों जो ढूँढ़ती हो, आशिक मिले जो दूजा
–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित