मन की उलझन
मन की उलझन ऐसी है,
उलझी रस्सी जैसी है।
मन की उलझन कभी ना सुलझे,
जीतना सुलझे उतना उलझे।
तन और मन के बीच,
जब ताल-मेल बिठ नहीं पाता।
तो पैदा होती है उलझन
उलझन को जितना सुलझाओ,
उतनी ही उलझती जाये।
अगर हो उलझन को सुलझाना,
तो तन की सोचों
ना मन की सोचों,
किस्मत पे छोड़ो।
नाम-ममता रानी,राधानगर(बाँका),बिहार