मन का मीत
जन्म जन्म का बिछड़ा कोई मीत मिला
आज हृदय की देहरी पर संगीत मिला
पंख लगे आसों की एक ललक जागी
आज मुझे अपना ही एक अतीत मिला।
बचपन के पल फिर ताज़ा से हो बैठे
धुन्धले से कुछ साये ज़िंदा हो बैठे
जीवन वीणा से निकला सुन्दर गीत मिला
जन्म जन्म का बिछड़ा कोई मीत मिला।
नटखट सरल चपलता का वह जीवन था
मदमाती मस्ती का जैसे आलम था
खेल खिलौनों में अटका उद्गीत मिला
जन्म जन्म का बिछड़ा कोई मीत मिला।
बीत चुके पल क्षण को तुम ले आओगे
बीत चुके बचपन को तुम दोहराओगे
बिसर चुका गत समय पुनः नवनीत मिला
जन्म जन्म का बिछड़ा कोई मीत मिला।
बुझा बुझा सा मन पंकज सा खिल बैठा
लहरों का यह ज्वार समंदर बन बैठा
मन के कोलाहल में अंतर- द्वीप मिला
जन्म जन्म का बिछड़ा कोई मीत मिला।
विपिन