*मन का मीत छले*
मन का मीत छले
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तन – मन दीप जले,
पग-पग फूल खिले।
चल कर देख लिया,
हर पथ शूल मिले।
हर दम धीर धरूँ,
मिलते खूब गिले।
हर मुख धूल चढी,
करता कौन भले।
हर दुख पीर सहूँ,
मन का मीत छले।
मनसीरत न सहे,
पल-पल तीर चले।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)