मन का मंदिर
मंदिर मन की आस्था,देरी से दुःख होय
राम पड़े पंडाल मे,सुधि लेता नहि कोय
सुधि लेता नहि कोय कि राम को घर मिल जाये
बड़े हृदय से काम करें जो जन के मन को भाये
कह कविराज कि जाने कब शुभ संयोग बने फिर
बन जाये जो अवध मे, आस्था से मन का मंदिर ।
मंदिर मन की आस्था,देरी से दुःख होय
राम पड़े पंडाल मे,सुधि लेता नहि कोय
सुधि लेता नहि कोय कि राम को घर मिल जाये
बड़े हृदय से काम करें जो जन के मन को भाये
कह कविराज कि जाने कब शुभ संयोग बने फिर
बन जाये जो अवध मे, आस्था से मन का मंदिर ।