मन का पंछी
दुनिया में चाहने से कुछ नहीं होता
चाहते हो तो खुल कर इजहार कर दो
इक पंछी बैठा हुआ है डाल पर, उसे
उड़ा दो गगन में, या हाथो में संभाल लो !!
परिंदे की तरह मन मस्त हो कर घूमना चाहता है
अपने पर को , हवा में फडफडाना, वो चाहता है
आजादी का दीवाना है वो मन का पंछी , कुछ भी
कहने से पहले, अपना चमन सजाना चाहता है !!
अजीत तलवार
मेरठ