*** मन का पंछी **
?मन का पंछी उड़ ना जाये रे
बडी भौर हुई मन
दिल को ये समझाये
बन्ध पिंजरे में पंछी रे
कैसे उड़ ये पाये रे
बिना पंखो का पंछी
कहीं उड़ ना जाये रे
बडा अंदर ही अंदर
दिल घबराता जाये रे
इस पंछी को ये घर
क्यों ना भाये रे
लोग देख पराया घर
मन ललचाये रे
ये अपना ही घर छोड़
कहाँ को जाये रे
मन का पंछी उड़ना चाहे रे
तोड़ रिश्तों का बन्धन अब
अपनी नगरिया जाये रे
ये पिंजरे का बन्धन
अब बांध ना पाये रे
मन का पंछी उड़ जाये रे ।।
?मधुप बैरागी