मन का खालीपन
कौन समझे मन के ख़ालीपन को
किसको हम समझाये।
उलझनें बढ़ती ही जाती है
मन नहीं कभी सुकून को पाये।
ख़्वाहिशों का अंतहीन सिलसिला,
बेकली को बढ़ाती जाती है।
हर लम्हें एक कसक मन को
बोझल सी कर जाती है।
भीड़ दिखती है हर तरफ
अंदर खाली खाली सा लगता है,
कहाँ इस दिल में कोई घर करता है।
मन के खालीपन को भरने की होती
तमाम कवायदें।
कुछ प्यारी सी नोंक झोंक
कोई मीठी सी चुभन।
मगर पाने की तमाम कोशिशें
और न पाने की कश्मकश।
मन का खालीपन भी बड़ा शोर मचाता है।