मन कर रहा आज यह मेरा…
मन कर रहा आज ये मेरा……
मन कर रहा आज ये मेरा
ख़त एक तुम्हारे नाम लिखूँ
बिन तुम्हारे कट रहीं कैसे
मेरी सुबहें औ शाम लिखूँ
आए हर पल याद तुम्हारी
तुम पर मैंने हर खुशी बारी
खुद को प्रेम-दीवानी मीरा
तुम्हें प्यारा घनश्याम लिखूँ
लिखूँ तुम्हें हाले दिल अपना
हर सुख जैसे हुआ है सपना
विरहानल में जलजलकर मैं
तड़पूँ कैसे आठों याम लिखूँ
नयनों में चल आते गुजरे पल
सूझे न कोई विपदा का हल
तन्हा पाकर इक अबला को
सताए नित कैसे काम लिखूँ
अब न भाए सावन की रुत
चकरी-सी घूमूँ बस इत-उत
कितना बोझ लदा काँधों पर
पलभर भी नहीं आराम लिखूँ
पाऊँ कहाँ मैं पता तुम्हारा
लाऊँ न जुबां पे नाम तुम्हारा
ढूँढे से नहीं मिलता हरकारा
इस हाल में क्या पैगाम लिखूँ
मन कर रहा आज ये मेरा
ख़त एक तुम्हारे नाम लिखूँ
बिन तुम्हारे कट रहीं कैसे
मेरी सुबहें और शाम लिखूँ
– डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
‘चिरंतन’ से