मन और मौन
मौन की शक्ति का चमत्कार
वाणी कर ली पूर्ण शांत, किया मौन को धारण
जीवन की हर समस्या का, मैंने पाया निवारण
मन बुद्धि की सब परतों को, देखा मैंने हटाकर
कौनसे गुण अवगुण मैंने, रखे हैं इनमें छुपाकर
मन की गहराई में जाकर, हुई खुद की पहचान
अब तक तो था मैं, अपने आप से ही अनजान
मौन में आते ही मैं, पहुंचने लगा खुद के समीप
जलता हुआ दिखने लगा, मैं बनकर आत्मदीप
प्राण ऊर्जा के अपव्यय का, समापन होने लगा
शांति के निज स्वधर्म में, पल पल मैं खोने लगा
मन में लगा रहता था, हर पल मेला विचारों का
एक दो चार नहीं, ये झुण्ड था लाख हजारों का
छंटने लगी व्यर्थ विचारों की, मन बुद्धि से धूल
इन्हीं विचारों द्वारा मैंने, स्वयं को चुभाये थे शूल
प्रकृति के सानिध्य में जाकर, मैंने समय बिताया
कुछ सुनी प्रकृति की, और कुछ अपना सुनाया
मौन के बल को मैंने, संजीवनी बूटी तुल्य पाया
दिव्य अलौकिक शक्ति से, भरपूर नजर मैं आया
मन की एकाग्रता से, संकल्पों को पवित्र बनाया
सम्पूर्ण सत्यता का बल, मैंने अन्तर्मन में जगाया
भांति भांति के व्यर्थ विचार, हुए मौन में विलीन
आत्म चेतना के भीतर हुआ, मैं पूरा ही तल्लीन
बढ़ने लगा मन मेरा, एकरस अवस्था की ओर
मौन की लहरें ले गई मुझे, परमशक्ति की ओर
मौन की शक्ति को मैंने, जीवन का अंग बनाया
प्रभु मिलन का सुख मैंने, इसी अवस्था में पाया.