मन और मस्तिष्क
मन में व्यथा थी और,
व्यथा तो व्यथा थी
महामारी की उपज थी
करोना का कहर थी
चारों ओर केवल एकांत
और अकेलापन
उस पर यह भारी सा मन
सड़के खाली, रास्ते अकेले
लोगों के अब नहीं लगते मेले ।
अशांत मन,मस्तिष्क में कोलाहल
दुःख, रंज से ग्रसित मन
अवसाद चहुँ ओर
आशा की किरणों से दूर
निराशा के मेघों से आसन्न
मेरा मन, मेरा मस्तिष्क
चिंता से पीड़ित मेरा मन l
चिंता, कुछ अपनों की
कुछ सामुहिक कुछ गैरों की भी
फिर दिमाग से पीड़ित
वेदना मस्तिष्क की
सर्व की समझ से परे ।
केवल एक ही समझ सके
मनोचिकित्सक ।