मन उस आँगन ले जाए (गीतिका)
आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए
अधरों पर छायी मस्ती ये क्यूँ अपनापन ले जाए
भिगो रहा है बरस-बरस कर मेघ नशीला ये काला
कहीं न ये यौवन की खुश्बू मन का चन्दन ले जाए
कड़क-गरज डरपाती बिजली पल-पल नभ में दौड़ रही
कहीं न ये चितवन के सपने संचित कुंदन ले जाए
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए
पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल रहीं
कहीं न ये अँगड़ाई का फन बरबस कानन ले जाए
बढ़ी जा रही भीग-भीगकर चिकुर जाल की ये उलझन
कुन्तल से हरियाला तरुवर हर्षित उपवन ले जाए
रुनझुन-रुनझुन करती पायल बिछुओं से कह आयी है
सारे बंधन तोड़ सखी अब मन उस आँगन ले जाए.
~ अशोक कुमार रक्ताले.