मन अभी उलझा हुआ है
मन अभी उलझा हुआ है ।
गीत का मुखड़ा हुआ है ।।
रात अब तपने लगी है ,
दिन बहुत ठंडा हुआ है ।।
फूट की बुनियाद गहरी ,
लूट का पहरा हुआ है ।।
चमन को कुचला जिन्हौंने ,
उन्हीं का चर्चा हुआ है ।।
ज़रूरत जिसकी सभी को ,
काम वह आधा हुआ है ।।
अधूरा है जहाँ जो भी ,
पूर्ण का दावा हुआ है ।।
बिछा लो अब पलक “ईश्वर”,
मिलन का वादा हुआ है ।।
ईश्वर दयाल गोस्वामी ।