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17 May 2021 · 1 min read

मन अंदर ही ‘मन्दिर’

मन अंदर ही मंदिर
मन अंदर ही मस्जिद
मन अंदर ही गिरजा
मन अंदर ही गुरद्वारा
फिर क्यों बाहर तू गुम घूम रहा
हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई-सरदारा

बाहर लड़-लड़ वक्त गुज़ारा
खुद को ही तूने बस सच्चा पुकारा
छोड़ दे अब ये ज़िद और बहस
क्या इसमें मैंने , क्या तूने पाया
दिल-दिमाग भी सब तेरे अंदर
इंसान बन सिर्फ इंसान
‘इंसानियत’ में ही है रब समाया।

©® Manjul Manocha ©®

Language: Hindi
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