मन अंदर ही ‘मन्दिर’
मन अंदर ही मंदिर
मन अंदर ही मस्जिद
मन अंदर ही गिरजा
मन अंदर ही गुरद्वारा
फिर क्यों बाहर तू गुम घूम रहा
हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई-सरदारा
बाहर लड़-लड़ वक्त गुज़ारा
खुद को ही तूने बस सच्चा पुकारा
छोड़ दे अब ये ज़िद और बहस
क्या इसमें मैंने , क्या तूने पाया
दिल-दिमाग भी सब तेरे अंदर
इंसान बन सिर्फ इंसान
‘इंसानियत’ में ही है रब समाया।
©® Manjul Manocha ©®