मन्दिर, मस्जिद नाम हैं मेरा , शिश झुकाने का करते फैरा।
मन्दिर, मस्जिद नाम हैं मेरा,,
शिश झुकाने का करते फैरा |
मन्दिर की पेढियाँ चढ जाने को,,
करते हैं मंदिर से रंग सवेरा ||
माँ- बाप से करते हैरा – फेरी,,
माँ बाप नहीं प्यारे, पत्नी प्यारी |
आँखों से परछाई भी न देखे बहू
जहाँ देखो वहाँ दुश्मन नारी की नारी ||
मन्दिर में पूजा करते हो तुम,,
बचपन में जिनके अधिन थे तुम |
आश्रम की धमकी सुनाकर के, ,
भगवान का दरवाजा खटखटाते तुम ||
माँ – बाप के पैर झुखे नही हो तुम, ,
मन्दिर का पाठ पढते रहते तुम |
लिज्जत हैं तुम पर इस दुनियां में,,
बैटे होकर कर्ज भुलते हो तुम ||
घर की मुर्त की सेवा की नहीं,,
मन्दिर से भी मेवा मिलेगा नही |
बचपन में जिसने पाठ पढ़ाया,,,
अब बुढापे में ज्ञान उपयोग नही||
दिन – दिन बढत अंजान रहते हो,,
केवल मंदिर का ही पाठ-पढते हो |
मन के मन्दिर को कभी जानना नही,
रणजीत क्यूं फल पाने को भटकते हो||
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां
7300174927