मन्दिर, मस्ज़िद धूप छनी है..!
देखें खाब सुनहरे कब तक..?
हाकिम अपने बहरे कब तक..?
सब्र यहाँ अब रखना मुश्किल,
बहता दरिया ठहरे कब तक.?
मन्दिर, मस्ज़िद धूप छनी है,
ख़ौफ़ज़दा से चहरे कब तक.?
मज़हब के इन गलियारों में,
ज़ख्म मिलेंगे गहरे कब तक..?
जन गण मन तो खत्म हुआ अब,
और तिरंगा लहरे कब तक..?
पूछ रहे नादान “परिंदे,”
घर की छत पर पहरे कब तक.?
पंकज शर्मा “परिंदा”.