मनोहन
मनमोहन
मनमोहन मुरली बजैया
श्याम छवि मन को लुभा रही
गोकुल में आज पधारे
यशोदा मां पालने झूल रही।
मधुर मुस्कान चंचल नयन
मोर मुकुट नटखट चितवन
यशोदा मां लोरी सुना रही।
तोतली मधुर बोली
मुख में माटी रख ली
लुकाछिपी खेल दौड़ रहे
यशोदा मां माखन मिश्री ला रही।
सांवली सूरत पीतांबर पहने
मंद मंद मुस्कान छवि सोहे
यशोदा मां लल्ला को निहार रही।
आधार में बंसी हृदय में राधे
जग के स्वामी भक्तकारज साधे
यशोदा मां कब से घर बुलाएं रही।
मनसीरत यह मन बावला
होता अधिक अधीर
कृष्ण लीला देखने लगी सीर
मैं भी करजोर कब से टेर लगाई रही।
– सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान