” मनोबल “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हमें तो मौन रहना भी आता नहीं,
छुप छुप के आंसू बहाना आता नहीं !
दिल में खंजर चुभ जाए तो भला,
दर्द को चुप- चाप सहा जाता नहीं !!
मान लेते हैं भुजाओं में बल ना हो,
जान जाते हैं युवा का जोश ना हो !
पर मनोबल सर चढ़ के बोलता है,
मान लेते हैं कि आवाज़ ठोस ना हो !!
विसंगतियों को भला हम क्यों सहेंगे ?
अपनी बातों को हम तो कहते रहेंगे!
कुरीतियां जो व्याप्त हैं इस संसार में ,
उसको इंगित हम सदा करते रहेंगे !!
बुरा लगता है तो उनको लगने भी दें,
कुछ इन से सुधर जाएं तो सुधरने भी दें !
हम लिख कर ही आंदोलन को लाएंगे,
हमें घर-घर अलख को जगाने भी दें !!
मौन रहने से हम शिथिल बन जायेंगे,
अकर्मण्यता के बोझ तले दब जायेंगे !
मनोबल जब तलक हमारे साथ में है,
कर्तव्य आजन्म हम यूं करते जायेंगे !!
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड