मनुहार
तुम ऐसे रूठ जाओगे पता न था
अश्कों को यूं हम बहने ना देते
किस्से दिल में जो दफन थे सदियों से
उन्हें हम लब तक आने ना देते
लफ्ज़ जो निकले ज़ुबाँ से हमारी
दिल में नश्तर से चुभ गए हैं
बेखबर थे तुम जख्मों से हमारे
चुप रह कर के कैसे सह गए हैं
तुम्हे गुरूर था अपनी दोस्ती पर
मेरे हर राज़ के राज़दार हो तुम
बस यही एक वजह है रूठने की
मेरे इस जख्म से बेख़बर रहे तुम
हर जख्म का मरहम होता है दोस्त
कितना भी गहरा हो भर ही जायेगा
गर तुम रूठे रहे युहीं यकीं मानना
ये दोस्त जीते जी ही मर जायेगा
वीर कुमार जैन
15 सितंबर 2021