” मनुहार है ” !!
थाम लो हाथ फिर से ,
उपकार है !!
दो कदम तुम चले हो ,
मैं भी चला !
फासले मिटते गये ,
फिर क्या गिला !
मोह का यह पाश है ,
दीदार है !!
महक है बिखरी हुई ,
कहती दिशा !
जादुई सा मिलन है ,
बहकी निशा !
बाहों को विस्तार दो ,
सत्कार है !!
सुमन हाथों में लिये ,
मौन हूँ मैं !
लुट गया हाथ तेरे ,
कौन हूँ मैं !
आज लब पर फिर वही ,
मनुहार है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )