मनुवा तेरे
मनुवा तेरे
मनुवा तेरे बतियाने का
तौर तरीका जो बदला है
वक्त तुझे दिखला देगा
ये दुनिया कैसा – कैसा है
मनुवा तेरे….
संभल जा तू समय रहते
या निकल ले बहते बहते
कभी यहां कभी वहां की दरख़्त में टकराएगा
बेवजह ही फस जायेगा
मनुवा तेरे….
थोड़े प्रसिद्धि पाने मात्र से
जो इंसान इतरायेगा
ओ शीघ्रता से गिर जाएगा
उसे मंजिल न मिल पाएगा
ओ मझधार में फस जायेगा
मनुवा तेरे….
चल निकल तू आगे बढ़
मानवता तुझे बढ़ाएगा
और कोई नही आयेगा
तुम्हारे भीतर विराजमान आत्मबल ही काम आएगा।
मनुवा तेरे..
न हो निराश किसी के कहने से
सब काम संवर जायेगा सहने से
बिंदास होकर कर्म किया कर
सब अपना होता चला जाएगा।
मनुवा तेरे ….
नहीं यहां कोई पराया है
इस बात को लेकर बेगाना है
जब मानव की दल बल साथ देगी
पर्वत भी हिल जायेगा।
मनुवा तेरे….
रचनाकर
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक जिला दुर्ग
छत्तीसगढ़