मनुज धर्म
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में
जाकर टेका मत्था ।
तीर्थ यात्रा करने जाते
बड़े बनाकर जत्था ।।
पर हृदय में दया न देखी
निज स्वार्थ में लागे ।
परहित से मुँह मोड़ प्रभु की
शरण ढूँढने भागे ।।
अपना पेट पशु भी भरते
खुद के लिए जीते हैं ।
अपने कुनबे की खातिर
चारा पानी पीते हैं ।।
मनुज धर्म को भूल घर
आडंबर का भरते हैं ।
मन से कर कुतर्क धर्म की
ख़ुद व्याख्या करते हैं ।।
सबसे बड़ा है धर्म दीन
हीनों के संकट हरना ।
और स्वदेश की रक्षा के
हित प्राण न्योछावर करना ।।