मनुज तू क्यों इतना मगरूर मोह-मद मादकता में चूर। *******************
मनुज तू क्यों इतना मगरूर
मोह-मद मादकता में चूर।
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स्वप्नवत जीवन का अध्याय,
जतन कर कुछ तो करे उपाय
धन्य ये मानवता हो जाय,
सीख ले कुछ तो आज सबूर
मनुज तू क्यों इतना मगरूर
मोह-मद मादकता में चूर! ***************
बड़ी नाजुक जीवन की डोर
डोर का छोर कहाँ किस ओर
नहीं इसका कोई आभास,
अरे फिर किसका करे गुरुर
मनुज तू क्यों इतना मगरूर
मोह-मद मादकता में चूर ।*******************
रखे जो निज गौरव सम्मान
यही सच में है स्वाभिमान
करे जो औरों का अपमान
स्वयंभू होकर रहे सुदूर
मनुज तू क्यों इतना मगरूर
मोह-मद मादकता में चूर ! ******************