मनी मनी मनी
मनी मनी मनी
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यूनेस्को द्वारा “द वेस्ट प्राइम मिनिस्टर आॅफ वर्ल्ड” से नवाजे मोदी जी ने कालाधन निकलवाने की जो युक्ति निकाली , स्पष्टत: ही सराहनीय है ।
लेकिन देवोत्थान से चार दिन पहले , जबकि विवाह का मौसम है तो कुछ अल्प आयवर्ग की आलोचना एवं कटाक्ष का पात्र भी है ।
मोदी जी की अर्थ सम्बन्ध रणनीति से 500 और हजार के नोट चारों खाने चित्त ओधे मुँह पड़े है 10 ,20, और 50 के नोट बिलों में निकल झाँखने लगे है ।
“देख बड़न नोट , लघु न दीजिये त्याग”
दस का नोट सिकुड़ा हुआ बैठा था और चुपचाप बीस और पचास के नोटों से अपना भातृत्व जता रहा था , बहुत गम को सहन कर मन में कुढ़ रह हो ।के नोट चारों खाने चित्त हो गए।
उसे ईर्ष्या हो रही थी कि बड़े – बड़े नोट इंसानों के साथ जगह बना रहे है । थोड़ी सी जगह पा तुरंत चल देते है लेकिन यह देख दस बीस और तीस के नोट को बैचेनी होने लगी और बड़े नोटों को सबक सिखाने सिखाने की सोची !
क्योंकि एक बार पचास , दस और बीस ने
नोट ने हजार और पाच सौ का साथ चाहा , तो हज ने डॉटते हुए कहा , तू अभी छोटा है , चुप बैठ ।
हम बडे है तू हमारे साथ नहीं हो सकता क्योंकि हम आसानी से चल सकते है । तीनों को बड़े नोटों से बहुत ईर्ष्या हो रही थी।
क्योंकि बड़े नोटों की कद्र सांतवें आसमान छू रही थी जब वे घर में आये थे तब घर के सभी सदस्य सिहा रहे थे दबा कर तहखाने मे रख दिया गया था ।
ऐसे में जब बडे नोट पाँच सौ हजार अंगरखे में दुबक सूटकेसों में एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा कर रखे थे ।
तभी भाग्य ने करवट ली कि बोरे मे दुबक जिससे कोई पहचान न पाये करोड़ो ने आत्मदाह कर लिया और करोड़ों ने करोड़ों का हार्टफेल करा दिया ।
यह सब देख छोटे नोट यूनिटी में आ गये और बड़ो को मुँह चिड़ाने लगे बहुत बड़ा बनता था अत्यधिक आवश्यकता महसूस हुई तो आगे बढ़ कर छोटे नोटों ने बहत साथ निभाया और इकोनोमिक क्राइसिस की स्थिति में मरते हुए इसान को सहारा दिया । अब आग की लपटों में आत्मदाह कर ।
खुद कभी गरीबों के पास नहीं गया अमीरों की शोभा बढ़ाता रहा । जा , अब इन आग की लपटों में समा जाओ , छोटे नोट बड़ो से कहने लगे ।
डॉ मधु त्रिवेदी