* मनवा क्युं दुखियारा *
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
तुमने ही तो राह दिखाई
मैं तो मात्र अकिन्चन हुँ
बैठ अकेला लिखने कविता
शब्द चयन को चिन्तित हुँ
मैं तो मात्र अकिन्चन हुँ
भोला भाला सीधा सादा
इक नन्हा बालक सा
मनवा इस मानव का
जग से हारा कभी न जीता
हुँ गया ठगा मैं थका सा
करनी सबकी साथ रहेगी
जैसा करेगें वही भरेंगे
आज नही तो कल
काल का पहिया दौड रहा हैं
सब को देगा फल
दिल को दुखा कर
मन को सता कर
चोटिल करता प्राणी
भगवन के दरवार में
लिखि गई सब कहानी
धर्म करम का ध्यान न रखता
दान सहायता कभी न करता
दीन दुखी के संकट से
जो लेता आन्खें फेर
वक्त पड़े पर सब आएगा
भई थोड़ी सी है देर
अरुण अकेला क्या कर लेगा
समझ समझ की बात है
समय समय का खेल है
बाकी तो दुखिया सब संसार है