मनभावन सावन
रिमझिम-रिमझिम फुहारें लेकर,
मनभावन सावन आया है
ठंडी-ठंडी पवन के झकोरों, ने
तन-मन को महकाया है
घनघोर-घटाओं की बारिस से,
धरा-धुलकर निखरी लगती है
नीलगगन में उगा इंद्रधनुष,
बच्चों के मन को भाया है।
पानी की बूंदों को छूकर,
बचपन की यादों में खो जाना
बनाकर कागज का नौका,
भरे ताल में तैराना
मीठे धुन की संगीतें सुनना,
हमजोली संग;बारिस में भीगना
बादल की छटाओं के नीचे,
मयूर का नृत्य मनभाया है।
मनभावन लगे; हवा से लहराते
तरंग सा वो ताल का पानी
बूंदों ने है मोती बिखेरे,
पौधों की पंखुड़ियों पर
सावन ने रंगीन फ़िजाएँ सजाई,
धरा ने धानी चूनर ओढ़ी
बिजली की चमक व बादल की गरज
ने, वसुधा पर मोती गिराया है।
तन-मन को अहसास कराते,
नए ताजगी से यह सावन
त्यौहारों का है; इसमें संगम,
तीज, नागपंचमी व रक्षाबंधन
झूला-झूलकर आनन्द उठाते,
बच्चे, युवक और वृद्धजन
भाई-बहन के पावन रिश्ते ने,
सबका अभिमान बढ़ाया है।
कांवड़-यात्रा में जाते भक्तगण,
शिवालयों में होता है; कीर्तन
स्नेह का अद्भुत संचार बधाए,
जीवनसाथी के बीच अलौकिक
मौसम ने ली है; अनोखी अंगड़ाई,
खेतों में छाई मनोरम हरियाली
वन-उपवन के सौन्दर्य में खोकर,
खग-मृग में अनुराग रचाया है।
–सुनील कुमार