“मनभावन पहेली”
“मनभावन (कह मुकरी छंद)
रूप सलौना खूब सजाते
श्याम भ्रमर मन को अति भाते
स्वप्न दिखाकर जागे रैना
ए सखि साजन?ना सखि नैना!
मुख निकसत मिश्री कहलाती
कोकिल मीठी तान सुनाती
मन मदमाती मीठी गोली
ए सखि साजन? ना सखि बोली!
देख बदरिया कारी-कारी
नाचत उपवन शोभा न्यारी
रूप लुभावत है चहुँ ओर
ए सखि साजन? ना सखि मोर!
छमछम करती प्रीत बुलाती
सौतन बनकर नींद चुराती
तन-मन देखो करती घायल
ए सखि साजन?ना सखि पायल!
भाल चढ़ी खुद पर इतराती
भोर की लाली रूप चुराती
मनभावन हरती निंदिया
ए सखि साजन?ना सखि बिंदिया!
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- “साहित्य धरोहर”
महमूरगंज, वाराणसी(मो. 9839664097)